Tuesday 4 August 2009

जित् ने थे रन्ग् हुस्ने बयान् के बिगड् गये
लफ़्ज़ोन् के बाग् शहेर् कि सुरत् उजड् गये

ये मौज़ेज़ा हयात् क मामूल् बन् गया
इत् नि दफ़ा चिराग् हवाओन् से लड् गये

इस् आन्घियो कि फ़स्ल् मे है किस् बिना पे नाज़्
तुम् क्या हो आस्मनो के खेमे उखड् गये

कत्रे लहु के जिन् को समझ्ते थे बे नमु
अक्सर् ज़मीने शोर् मे जड् पकड् गये

तन्हा है प शिकस्ता है और् मौत् घात् मे
तुम् किस् हसीन् रात् मे हम् से बिछड् गये

रुस्वा हुआ है मिन्नते चारागरन् से दिल्
जिस् जिस् जगह् थे ज़क्म् वहा दाग् पड् गये

गर्दन् फ़रज़ियोन् का है मख्तल् ज़मीन् तमम्
कैसि कहन् ये बात् पे तुम् अप्नि अड् गये

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